Hot Posts

6/recent/ticker-posts

झोलाछाप डॉक्टरों के लिए वरदान साबित हो रही स्वास्थ विभाग की चुप्पी

कार्यवाही के लिए आखिर किस मुहूर्त का इंतेज़ार है जिम्मेदारों को


भोपाल । शहर के बाहर के ग्रामीण क्षेत्रों से ज्यादा झोलाछाप डॉक्टरों के दवाखाने आपको भोपाल की गलियों से लेकर रोड़ों तक देखने को मिल जाएंगे, नगर की सीमा से सटे गांवों व कस्बों में अच्छे डाक्टरों और बड़े अस्पतालों की कमी का भरपूर फायदा झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा उठाया जा रहा है । इन अयोग्य डॉक्टरों के इलाज से कई बार तो लोगों को जान के लाले पड़ जाते हैं, जिसके कई उदाहरण आम लोगों से लेकर प्रशासन तक के सामने आए हैं । बावजूद इसके ये झोलाछाप डॉक्टर राजधानी में धड़ल्ले से अपनी मनमानी कर रहे हैं और मूकदर्शक बना स्वास्थ्य विभाग उन पर अंकुश लगाने में नाकाम है । एक तरफ गांव व कस्बों की गरीब आबादी झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज करने के लिए विवश है, तो वहीं दूसरी ओर झोलाछाप डॉक्टर भी  कार्रवाई के डर से एक जगह ज्यादा दिनों तक टिक कर नहीं रहते । लेकिन शहरी क्षेत्रों में कई ऐसे फ़र्ज़ी लोग भी डॉक्टरी इलाज कर रहे हैं जो खुद कम पड़े लिखे हैं और जिन्होंने किसी दूसरी अस्पताल में इंजेक्शन व ड्रिप लगाना सीखा है । सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार "इंडियन मेडिकल काउंसिल" एवं  "सेंट्रल काउंसिल फोर इंडियन मेडिसिन" से पंजीकृत चिकित्सक वैध माने जाते हैं, और जो लोग इन संस्थाओं में पंजीकृत नहीं है वह झोलाछाप डॉक्टर की श्रेणी में आते है। बिना डिग्री और योग्यताओं के यह डॉक्टर लगभग हर गंभीर बीमारियों का निदान करने के नाम पर मरीजों से मोटी रकम वसूल कर रहे हैं । विशेषज्ञों की मानें तो बंगाली क्लीनिक चलाने वाले लगभग 90 प्रतिशत डॉक्टरों के पास कोई डिग्री नहीं होती, कई फ़र्ज़ी डॉक्टरों ने अपने बचाव हेतु एम बी बी एस, एम डी और विशेषज्ञों के नाम अपने दवाखानों में लिख रखे हैं । ऐसे डॉक्टर डिग्री न होने के बावजूद लगातार मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं, भोपाल शहर के छोला, शाहजहानाबाद, चंदबढ़, भानपुर, शिवनगर, आरिफ नगर, गोविंदपुरा, अशोका गार्डन, द्वारका नगर, बजरिया, बैरागढ़ गांधीनगर  से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों जैसे सूखी सेवनिया, बालंपुर, भदभदा, बिलखिरिया, कान्हासैया के पास तक में विभिन्न नामों से झोलाछाप डॉक्टरों की हज़ारों दुकानें चल रही हैं । स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ जब भी अभियान चलाया जाता है तो यह अपनी क्लीनिक बंद करके गायब हो जाते हैं। कार्रवाई की भनक इन्हें कहां से मिलती है यह बड़ा प्रश्न है  । झोलाछापों पर बड़ी और प्रभावी कार्यवाही न होना स्वास्थ विभाग की लचर कार्यप्रणाली का बेहतर नमूना कहा जा सकता है, ज़िम्मेदार अधिकारियों की उदासीनता निश्चित रूप से फ़र्ज़ी डॉक्टरों के लिए वरदान सिद्ध हो रही है ।


पहले करते हैं इलाज, फिर हाथ खड़े


झोलाछाप डॉक्टर रोग की पहचान करने या समझने में समय बर्बाद नहीं करते, ये पहले उल्टा सीधा इलाज करते हैं इसके बाद जब स्थिति काबू से बाहर हो जाती है तो किसी बड़े डॉक्टर को दिखाने के नाम पर अपनी पीछा छुड़ा लेते हैं । ऐसे अयोग्य डॉक्टर बीमारियों की जांच के लिए कोई भी परीक्षण तक कराने की सलाह नहीं देते हैं जबकि अभी कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए शासन प्रशासन रात दिन एक कर रहा है । सर्दी खांसी बुखार या एलर्जी जैसे लक्षणों के नज़र आने पर सटीक जांचों हेतु शासकीय स्वास्थ्य केंद्रों में मरीज पहुंचाने के निर्देश भी सभी प्राइवेट डॉक्टरों को दिए गए हैं, परंतु उल्टी दस्त आदि सामान्य बीमारियों के अलावा मियादी बुखार, डेंगू, मलेरिया, हैजा, पीलिया, मष्तिक ज्वर, चिकन पॉक्स व एलर्जी तक का इलाज करने से ये झोलाछाप नहीं चूक रहे हैं । इनके द्वारा बिना जांच के किया जा रहा इलाज सीधे तौर पर सरकारी आदेशों की अवहेलना ही है, इनके हौंसले इतने बुलंद होते है कि बिना प्रशिक्षण के ही लोगों को इंजेक्शन लगाने के साथ ग्लूकोज व अन्य दवाओं को चढ़ा देते हैं, दवा की खुराक की सही जानकारी न होने के बावजूद सामान्य बीमारी में लोगों को दवा की हैवी डोज दे देते हैं जो बेहद नुकसानदेह है ।