ज़िम्मेदार अधिकारियों की सुस्त कार्यशैली पर खड़े हुए कई सवाल
भोपाल । एक तरफ देश की मोदी और प्रदेश की कमलनाथ सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने को नित नये निर्णय ले रही हैं वहीं दूसरी ओर भोपाल की ग्राम पंचायतों में हो रहे भ्रष्टाचार को दबा कर अधिकारी भ्रष्टाचारी सरपंच, सचिव व ठेकेदारों की तिकड़ी पर मेहरबान हैं। ग्राम पंचायतों में जनता के द्वारा चुने सरपंच और प्रशासन के प्रतिनिधि सचिव विकास कार्यों की गुणवत्ता खा रहे हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में ठेकेदारों के रूप इस कारनामे में 'पार्टनर' की तरह सामने आ रहा है । ये तिकड़ी विकास कार्यों के लिए आने वाली राशि को षडयंत्र रच कर निपटाने पर तुली है, कमोवेश यह स्थिति अधिकतर पंचायतों में देखने को मिल रही है । ग्रामीणों को पक्के रोड, शौचालय आदि देने से संबंधित सरकार के महत्वाकांक्षी कार्यों में ग्राम पंचायतो में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार किया जा रहा है, राजधानी भोपाल के फंदा ब्लाक की अधिकतर ग्राम पंचायतों में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार सामने आने के बाद अधिकारी "टेक्निकल पॉइंट" का हवाला देखकर मामले को रफा दफा करने में जुट जाते हैं । ऐसे मामलों की जानकारी जब फंदा जनपद सीईओ देवेश मिश्रा के सामने आई तो गोलमाल जवाब देकर अक्सर भ्रष्टाचारियों को बचाते नजर आये, पंचायतों में सादे कागज पर फर्जी बिल लगाकर लाखों का लेनदेन दर्शाया जा रहा है जो इस भ्रष्टाचारी तिकड़ी का षडयंत्र है । हालांकि इसकी जानकारी जिला पंचायत सीईओ एवं कलेक्टर को भी है लेकिन अभी तक किसी भी मामले में सरपंच सचिव और ठेकेदारों पर कोई ठोस कार्यवाही सामने नहीं आई है, कहीं गांव की नालियां साफ कराने, कहीं पूरे गांव से कचरा साफ कराने तो कहीं सामान खरीदी के नाम पर सादे कागज पर ही बड़े भुगतान किए गए हैं, इन फ़र्ज़ी बिलों पर काम करने वालों के पते या संपर्क सूत्र भी लिखे नहीं हैं । किसी पंचायत ने ढोल मंजीरे के नाम से तो किसी जगह चाय नाश्ते के नाम से सरकारी पैसों की बंदरबांट की गई है, ऐसे फ़र्ज़ी कागज के टुकड़ों पर लाखों के भुगतान की रसीदें भी लिख दी गईं हैं । प्रश्न यह है कि जो ठेकेदार पक्के बिल पर निर्माण सामग्री उपलब्ध करा रहा है, वो मज़दूरी भुगतान की पक्की रसीद क्यों नहीं दे रहा ? फंदा जनपद सीईओ देवेश मिश्रा तो स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि बिल फर्जी हो या जीएसटी वाला हो इससे हमें कोई लेना देना नहीं है । उनके अनुसार पंचायत खुद ही निर्माण एजेंसी है और वह अपना कार्य ठीक से कर रही है हम तो पैसा देकर भूल जाते हैं हमें सिर्फ कार्यों से मतलब है । इन सबसे इतर निर्माण कार्य की गुणवत्ता की चिंता किसी को भी नहीं है, गुणवत्ता की शिकायत पर भी देवेश मिश्रा अधिकतर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते नजर आते हैं । उनको पंचायत में हो रहे भ्रष्टाचार के खेल से अवगत तो कराया, पर जांच के अलावाअभी तक किसी भी दोषी पर कोई बड़ी कार्यवाही नहीं हो सकी । ग्राम पंचायत नादनी में ऐसा ही मामला सामने आया था जहां पर रोड निर्माण के लिए स्वीकृत राशि 3 लाख 34 हज़ार सरपंच सचिव द्वारा प्राप्त करने के बाद भी रोड का निर्माण नहीं किया गया था, जबकि इस मद की राशि ठेकेदार प्रदीप सिकदार के खाते में ट्रांसफर कर दी गयी थी । इसी प्रकार की एक शिकायत ठेकेदार आर के मिश्रा के विरुद्ध भी की गई थी, उक्त ठेकेदार ने स्वयं कुबूल कर बताया था कि सरपंच सचिव सिर्फ पांच परसेंट पर ठेकेदारों से बिल लेकर लगा रहे हैं । सवाल यह था कि पांच प्रतिशत कमीशन पर बिल लेने की आवश्यकता क्या थी ? जबकि आप जिनसे निर्माण सामग्री खरीद रहे हैं उनके बिल क्यों नहीं लगाए गए ? क्योंकि पंचायत क्षेत्र में किये जाने वाले निर्माण कार्यों के लिए आने वाली राशि मे से बड़ा हिस्सा डकारने में लगी ये तिकड़ियाँ बड़ी शातिर हैं । आर के कंस्ट्रक्शन के संचालक मिश्रा द्वारा स्पष्ट तौर पर मीडिया से यह कहना कि मैं तो कोई निर्माण कार्य नहीं करता हूं सरपंच सचिव मुझे पांच परसेंट देकर मुझसे बिल लेते हैं, इसकी भी शिकायत जिला सीईओ एवं कलेक्टर को लिखित में की जा चुकी है पर भ्रष्टाचारी ठेकेदार सहित उसके द्वारा लगाए कुल बिलों की जांच के निष्कर्ष का आज भी शिकायतकर्ता को इंतजार है । एक ओर विकास की गंगा बहाने के लिए सरकार की विभिन्न योजनाये चल रही हैं जिनमे धन की कोई कमी नहीं है, किसी न किसी मद से विकास कार्यों का पहिया घूमता ही रहता है भ्रष्टाचारी तिकड़ियाँ जगह जगह मौजूद हैं और सरकारी पैसों में बत्ती देना भी बदस्तूर जारी है । नाली-खरंजों के निर्माण के साथ-साथ पानी और पर्यावरण को बचाने के लिए भी कई योजनाए हैं, जिन पर जिला प्रशासन से लेकर शासन तक पसीना बहा रहा है, इनमें जल शक्ति अभियान, स्वच्छ भारत मिशन, पौधारोपण अभियान आदि शामिल हैं। इनकी समीक्षा स्वयं प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री करते हैं। सोचिए, इतनी सख्ती के बाद ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार अंगद के पैर की भांति ही जमा हुआ है । सूत्रों की मानें तो उल्लेखित मामले फंदा जनपद में चल रहे भ्रष्टाचार की एक बानगी भर हैं, यदि सही समय पर ईमानदारी से जांच हो जाये तो कई पंचायतों की भ्रष्टाचारी तिकड़ियों सहित जनपद के कई अधिकारियों के चेहरों से ईमानदारी का नकाब उतर जाएगा और उनका असली चेहरा उजागर होगा।
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