ये नैन तरसे इंतज़ार में तेरे,
इन नैनों को और तरसाओ न जरा,
आस भी टूट रही विनती करते,
इन उम्मीदों को ना झुठलाओ जरा,
राह ताक रही है तेरी,
अब मिट्टी से मिल जाओ जरा,
क्यों सुखा है कंठ जमी का,
हे मेघ! बरस जाओ जरा ।
तड़प रहा आसमान मिलन को,
बुला रही ये धरती तुझको,
जैसे कहे कोई प्रेमिका प्रेमी से,
आ गले लगा ले मुझको,
आतुर है बाहर आने को ये बीज,
अब मेहनत पर तरस खाओ जरा,
भीगा दे अपने अंश से इसको,
हे मेघ ! बरस जाओ जरा ।
तुझसे ही हरियाली है धरा पर,
तुझसे ही किलकारियां है वनों में,
तुझसे ही है ये जीवन,
तुझसे ही है खुश्बू पवनों में,
बुला रहा है 'सावन' तुझको,
तुम बौछार कोई बन जाओ जरा,
फिर होगा रंगीन ये मौसम,
हे मेघ! बरस जाओ जरा ।
- आकाश परमार
Social Plugin