नारी शक्ति
साहस की हुंकार है,
सहनशीलता जिसमें अपार है,
कड़क दामिनी सी मुखध्वनि जिसकी,
हर अत्याचार पर पलटवार है,
मूरत है ममता की कभी,
तो कभी बहन का प्यार है,
तू साथ जीवनसंगिनी सी,
लड़ने हर परिस्थिति से तैयार है,
तू ही सती, तू ही सावित्री,
तू ही काली का रूप है,
तू मान है, लाज है घर की,
तू ही जगत माँ का स्वरूप है
तू शत्रु के सम्मुख मृत्यु सी,
खड़ी बन उसका काल है,
तू वीरांगना रणभूमि की,
तू सुर्ख रक्त सी लाल है,
तूने सहा हर असहनीय दर्द,
निकली न तेरे मुख से आह,
तू विशेष दृष्टांत परित्याग का,
विस्मृत कर अपनी हर चाह,
रोशन तेरी ज्ञान-प्रभा से सृष्टि,
तू ही दिखाती सच्ची राह,
कलियों को फूल बनाती तू,
देकर अपने आंचल में पनाह,
इतिहास गूँजता तेरे किस्सों से,
तेरी महिमा अपरंपार है,
आंच आयी जब-जब मर्यादा पर,
तेरे हस्त विराजित हुई तलवार है,
कैसे बखान करू तेरा,
तू लिए हुए ह्रदय विशाल है,
शत-शत नमन "नारी शक्ति" को,
अब न और कोई सवाल है...
दृष्टांत : उदहारण
विस्मृत : भूलकर
रचना : आकाश परमार
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