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कैसे हो रखवाली, जब बागड़ निगले खेत


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जी हां यह कहावत भोपाल जिले की अधिकतर ग्राम पंचायतों पर  100 फ़ीसदी सटीक बैठती है, और सटीक क्यों ना बैठे क्योंकि  जिन लोगों को आम आदमी (ग्रामीणों) ने मतदान कर सरपंच चुना है वे गड़बड़ियों में आकंठ लिप्त हैं । वहीं दूसरी ओर  पंचायतों में विकास कार्यों को  गति देने और ग्रामीणों की समस्याओं के समुचित निराकरण हेतु शासन द्वारा नियुक्त ग्राम पंचायत के सचिव भी कम नहीं बैठ रहे हैं । राजधानी भोपाल जिले की ग्राम पंचायतों का यदि जिक्र किया जाए तो कई पंचायतों में होने वाले निर्माण कार्यों में गड़बड़ियां देखने को मिल ही जाएंगी । अब समस्या सिर्फ इतनी सी है की ग्राम पंचायतों में गड़बड़झाले पर नकेल कसने वाले जिम्मेदार आला अफसर  आखिर इन पंचायतों पर क्या कार्यवाही करेंगे, क्योंकि कुछ मामलों की जानकारियां इन अफसरों को पहुंचा दी गई है । जबकि देखा जाए तो हकीकत यह है कि पंचायतों में फर्जी  निर्माण सामग्री के बिल देने वाले  ठेकेदार भी खूब सक्रिय हैं, कहीं निर्माण कार्यों के बिलों का  भुगतान होने के महीनों बाद भी कार्य प्रारंभ नहीं हुआ । ऐसी  स्थिति राजधानी भोपाल की पंचायतों की होगी किसीने सोचा भी नहीं होगा, सुरसा के मुंह की भांति बढ़ते भ्रष्टाचार और  गड़बड़ियों को देखते हुए यही कहना जायज होगा की "जब  बागड़ ही खेत को निकलने लगे  तो रखवाली कौन करेगा"


यक्ष प्रश्न
कुछ समय पूर्व से ही सरपंचों के अधिकारों और शक्तियों में वृद्धि करने की मांग भी सरपंचों द्वारा की जा रही है, और राजनीति के महारथियों बड़े आकाओं द्वारा भी  पंचायती व्यवस्थाओं को और अधिक मजबूत और सशक्त करने की बातें भी की जा रही हैं । अब देखना यह है की तथाकथित सीमित अधिकारों में काम (घोटाले-भ्रष्टाचार) करने वाले सरपंच अधिक अधिकार संपन्न होने के बाद कितना काम (घोटाले-भ्रष्टाचार) करेंगे ?